Saturday 23 July 2011

अब आतंकवाद के निशाने पर कौन ?

सुभाष धूलिया

पाक- अफगान भूभाग में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जटिल होता चला जा रहा है. अमेरिका जहाँ सैनिक वापसी के लिए अपने कुछ मकसद जल्द से जल्द पूरे कर देना चाहता है वहीँ पाकिस्तान इसमें एक रोड़ा साबित हो रहा है .यूं तो लादेन को मरने के लिए की गयी सैनिक कार्रवाई से ही तनातनी शुरू हो गयी थी पर इसके बाद पाकिस्तान ने कई ऐसे कदम उठाये जिनसे अमेरिका नाराज है. पाकिस्तान ने लादेन के मारे जाने के बाद न केवल सी.आई.ए. के पाकिस्तानी एजेंटों के धरपकड की गयी बल्कि अब अमेरिका के 200 ट्रेनरों को भी बाहर कर दिया है और आरोप लगाया कि ये पाकिस्तान में सी.आई.ए का तंत्र कायम करने में जुटे थे. अमेरिका ने अब साफ़ कर दिया है कि पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई.एस.आई लगाम लगाये बिना आतंकवाद का सफाया कठिन होगा. अमेरिका आई.एस.आई के प्रमुख जनरल पाशा को हटने के लिए भे दवाब डाल रहा है . तनाव इतना है के पाकिस्तान ने अमेरिका को शांत करने के लिए जनरल पाशा को अमेरिका रवाना करना पड़ा पर इसके कोई खास परिणाम नहीं निकले.
अब अमेरिका ने पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका दिया है और 80 करोड डॉलर की सैनिक मदद रोक दी है. पाकिस्तानी सेना काफी हद तक अमेरिका की मदद पर निर्भर है . 2001 में अफगान युद्ध शुरू होने से अब तक अमेसिका पाकिस्तान को १२ अरब डॉलर की प्रत्यक्ष सैनिक मदद दे चुका है . लादेन को मारने की कार्रवई और सीमा पर बढते हवाई हमलों से पाकिस्तान की सेना का एक वर्ग अमेरिका विरोधी भावनाएं भड़क उठी हैं और ऐसे में पाकिस्तान के लिए वह सब कर पाना मुश्किल हो रहा है जिसकी अमेरिका को दरकार है. अमेरिका का मानना है की आतंकवाद के खिलफ अभियान इसलिए सफल नहीं हो पा रह है क्योंकि पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डे हैं और फिर अफगानिस्तान के भीतर तमाम ऐसे आतंकवादी गुट हैं जिन्हें पाकिस्तान अपनी “सामरिक सम्पतियें” मानता है ताकि कभी इनका इस्तेमाल काबुल में पाक-परस्त सत्ता कायम करने के लिए किया जा सके. हक्कानी गुट इनमे सबसे ऊपर है और अमेरिका इस पर लगातार प्रहार किये जा रहा है. आई.एस.आई अपने आप को उस आतंकवाद से अलग नहीं कर पा रही है इसे इसने पिछले 30 वर्षों से पाला-पोसा है और जिसका इस्तेमाल भारत और अफगानिस्तान दोनों के खिलाफ किया है. आज भी आई.एस.आई अफगानिस्तान में उग्रवादी गुटों से पल्ला नहीं झाड रहा है और अब अमेरिका का दवाब इस कदर बढ़ गया है कि पाकिस्तान को कुछ ठोस निर्णय लेने ही होंगे.

इसके सामानांतर अफगानिस्तान में स्थायित्व कायम करने के प्रयासों बड़ा धक्का लगा जब राष्ट्रपति हामिद करज़ई के सौतेले भाई अहमद वली करज़ई के हत्या कर दी गयी. अहमद वली को कंधार का नेरश कहा जाता था और इनकी ताकत के पीछे अफीम के तस्कर तक शामिल थे. इन्हें अत्यंत भरष्ट माना जाता था पर तालिबान के गढ़ कंधार में इनकी तूती टूटी बोलती थी. सी..आई. ए. ने भी माना की तालिबान के गढ़ में इससे लड़ने के लिए अहमद वली की ताकत की जरुरत है. अहमद वली के जाने के बाद से कंधार में एक सत्ता शुन्य पैदा हो गया है जिसे भरना आसान नहीं होगा और इससे राष्ट्पति करज़ई की ताकत कमजोर हुयी है. अफगान युद्ध में तालिबान को परास्त करने के लिए कंधार का नियंत्रण अहम है.
इस पृष्टभूमि से यह स्पष्ट है अब पाक-अफगान भूभाग में अमेरिका की रणनीति आतंकवाद को खत्म करने से कहीं अधिक आतंकवादिओं ध्वस्त करने पर केंद्रित है. आने वाले दिनों में इस क्षेत्र सैनिक अभियान तेज होगा और पाकिस्तन को अपना रुख बदलने पर मजबूर होना होगा. इन सैनिक अभियानों से काफी हद तक वैश्विक आतंकवाद कमजोर हुआ है पर अब लादेन के उत्तराधिकरिओं को भी अपने आप को साबित करना होगा और निश्चय ही वे किसी “काफिरस्तान” पर आतंकी हमले करेंगे. आज अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश एक तरह के इलेक्ट्रोनिक किले बन चुकें हैं. इस इलेक्ट्रोनिक नज़र से बच कर आतंकवादी हमला कफी मुश्किल हो चुका है. इसी परिप्रेक्ष्य में मुंबई पर हमलों का आंकलन करना होगा. भारत एक विशाल देश है और इसका सुरक्षातंत्र अमेरिका जैसा नहीं हो सकता और इस दृष्टि से भारत आतंकवादिओं के लिए एक ‘सोफ्ट टारगेट’ हो जाता है. यूं तो अफगानस्तान और पाकिस्तान में रोजमर्रे ही आतंकवादी हमले हो रहे हैं पर भारत पर आतंकवादी हमलों के परिणाम अलग तरह के हंगे और स्थिति नाजुक तब और हो जाती है जब इस तरह के हमलों आई.एस.आई का हाथ हो. भारत पर हमलों से आतंकवादी इस इस क्षेत्र में एक तनाव का माहोल पैदा कर सकते हैं और पूरे क्षेत्र मैं चल रही विभिन्न राजनीतिक प्रक्रियायों ध्वस्त कर सकतें हैं. सरकारें भले कितनी ही परिपक्व क्यों न हों, किन्ही खास परोस्थियों में लोगों के आक्रोश की अनदेखे नहीं कर सकतीं. लेकिन जो भी हो इतना माना जा सकता है कि आज भारत के वैश्विक आतंकवाद के निशाने पर होने की वास्तविक सम्भावनाएं मौजूद हैं.

यह भी दिलचस्प है के आज की तारीख में जहाँ अमेरिका और पाक संबंधों मैं तनातनी है वहीँ भारत-पाक सम्बन्ध पटरी पर आते नज़र हैं. इस बार मुंबई हमलों के उपरांत किसी तरह के पाक विरोधी उन्माद पैदा नहीं हुआ और विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि वार्ता और आतंकवाद के अलग रखन होगा और ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए कि सरहद के पर के उग्रवादिओं और भारत-विरोधी उन्माद तो ताकत मिले. पाकिस्तान में भी शायद ये अहसास जग रहा है के वह अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा हो और आज अपने राष्ट्रीय जीवन को भारत-विरोधी धुरी पर बनाये रखने के गंभीर परिणाम होंगे. पाकिस्तान का अफगानिस्तान से लगी पश्चिमी सरहद में बहुत लंबे समय तक शांति कायम नहीं होने जा रही है और अफगानिस्तान में कैसी भे सत्ता अस्तित्व में आये –पाकिस्तान को शुकून नहीं देने जा रही. इस वक्त अफगानिस्तान में ऐसी किसी सत्ता की कल्पना नहीं की जा सकती हो अमेरिका-परस्त भी हो और पाकिस्तान को भी रास आये. ऐसे में कोई भी जरा सा भी विवेकशील पाकिस्तानी नेतृत्व भारत के साथ लगी पूरवी सरहद पर अमन चाहेगा.

आज इस भूभाग में आतंकवाद से लड़ने की हर रणनीति के केंद्र में आई.एस.आई है जो पाकिस्तान कि सत्ता का इ हिस्सा है. कोई भी आतंकवादी हमला जिसे आई एस आई के तत्त्वों का समर्थन प्राप्त हो उसे राज्य – प्रायोजित आतंकवाद ही कहा जाएगा.ऐसे में पाकिस्तान के सत्ता तंत्र को आई एस आई को साफ़ सूत्र करना होगा. इसके बिना न तो पाकिस्तान वह कर सकता जिसकी अमेरिका को दरकार है और भारत के साथ बेहतर संबंधों के लिए यह भी ज़रूरी है कि भारत पर ऐसा कोई आतंकवादी हमला न हो जो ऐसी श्रेणी में आता हो जिसमें आई एस आई का हाथ हो.
अब हर सवाल का जबाव इसी मैं छिपा है की क्या पाकिस्तान का सत्तातंत्र आई.एस.आई पर लगाम लगायेगा? यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसका ऐसा इरादा है और क्या वह यह करने में समर्थ है? इस तरह का इरादा न होना और इस तरह से समर्थ न होने कि स्तिथि में पाकिस्तान हमेशा शक के दायरे में रहेगा और मौजूदा परिस्थितियों में पाकिस्तान का ऐसा बना रहने स्वयं उसके लिए बहुत घातक है. इस सप्ताह भारत पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों कि वार्ता और अमेरिकी विदेश मंत्री क्लिंटन कि भारत यात्रा से पैदा हुआ माहौल पाकिस्तान के लिए अवसर भी पैदा करता है और चुनौती भी. यह पाकिस्तान पर निर्भर है कि वह किस हद्द तक इस अवसर का लाभ उठा पाता है और अपने इतिहास के सबसे बड़े संकट से कैसे और किस रूप में उभर पाता है. आज कई हलकों में पाकिस्तान के विखंडन की चर्चा होने आगे है.

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